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सोमवार, 7 मार्च 2011

hey eshwar (tanu thadani)

कोई साथ नहीं रोयेगा,
बैठ के जब  रोओगे  दुःख से !
सब रहते है अपनी-अपनी ,
दुनिया में अपने ही सुख से!!

दुनिया एक समुंदर है ओं ,
हम सब इक-इक लहरों पर!
फिर भी सपने पाल रहे हैं ,
आशाओ के पहरों पर!

अपने दुःख  का कारण खुद हो ,
जान-बूझ  कर भी बे-सुध हो !
आखिर खीझ रहे हो क्यों तुम?
बेगाने सपनो के रुख से!!

अगर जीतना है दुःख से तो ,
छिपो नहीं तुम बाहर आओ !
रखो ह्रदय को साफ़ औं बातें ,
भली निकालो अपने मुख से!!
























शनिवार, 5 मार्च 2011

hey eshwar (tanu thadani)

जिस बारिश से दुःख बह जाये ;
जिस अंधर से दुःख उर जाये ,
ऐसी बारिश दो ,अंधर दो!
जिस पेड़ ख़ुशी के फूल खिले ,
ईश्वर हमको ऐसी जर दो!!

मिट्टी के तन मे दिल देना,
तो मोम सा छोटा दिल देना!
हे ईश्वर पेट की ज्वाला को ,
संतुष्टि से ही सिल देना!!

मिट्टी के तन में दिल पत्थर .
ये मानव ले कर घूम रहा!
जिसके कारण खूं से लथपथ ,
उन नोटों को ही चूम रहा!! 

जीने की हरबर में हम सब,
हैं मौत की गारी में बैठे !
जायेगा कुछ भी साथ नहीं,
पर राजा जैसे हम ऐंठे !

जीवन तो राजा जैसा दो,
पर ऐंठ का कोई घर ना हो!
ईश्वर जितना भी जीवन दो,
इक लय सा दो ,ना हरबर दो!! 









शुक्रवार, 4 मार्च 2011

hey eshwar (tanu thadani)

अगर यकीं है  स्वर्ग पर ,
जीना फिर इस तरह,
तुम्हारे लफ्जो से कोई ,
आहत कभी ना हो!

भगवन उसे मिलेगे,
जिसके दिमाग में,
भगवान के आकार की .
चाहत कभी ना हो!

आता है गर क्रोध तो -
कमज़ोरियो से लर!
प्रेमी अगर हो सच्चे ;
तो माँ से प्रेम कर !

ईश्वर को तूने भोग लगाया तो क्या किया?
मूर्खो की तरह सूर्य को दिखाया क्यों दीया??

काबिल हो गरं,
दूसरों को काम दो बन्धु!
अब मंदिरों की घंटी को,
विराम दो बन्धु!!

मंदिर में ना जाना कभी मस्जिद में ना जाना
ईश्वर को ढूढने  को,
माँ के पास ही जाना !
माँ में ही तो रहीम तुम्हे राम मिलेगा ,
माँ के निकट ना कोई ताम-झाम मिलेगा!!

दुनिया की धुर्त्ततायें जब तुम को करे बेहाल,
माँ की ही गोद  में तुम्हे आराम मिलेगा!! 


















गुरुवार, 3 मार्च 2011

tanu thadani hey eshwar बचपन कागज कश्ती पानी

मिटती ही है- मिट  जाएगी,
दौलत -शोहरत और जवानी !
सांस-सांस में छम-छम नाचें,
बचपन-कागज-कश्ती-पानी!!

अपनी आदत में बचपन को ,
जिन्दा रखने वाला ही तो,
सही मायनो में पंडित है ,
सही मायनो में वो ज्ञानी!!

बड़े हुए तो देखोगे तुम,
दुनिया गम से भरी पड़ी!
छल छलके हर आँखों से औ ,
वासनाएं हर नजर खड़ी !!

भर सिन्दूर किसी का नारी ,
किसी के साथ भी सोती है !
छोटे हो या बड़े शहर,
बस यही कहानी होती है !!

अपने-अपने धोखों को,
अपने ढंग से जायज कहते!
न होता दुनियां में ये सब,
दिल से जो बच्चे रहते!!

अपने मन को बचपन की ,
मासूम सी  दुनियां में लाओ !
भोलेपन की लम्बी पगड़ी,
नफरत के सिर पहनाओ !!

इस जीवन को जी लो यूँ की ,
तुमने कही औ मैंने मानी!
लौट के आएगा फिर हममें,
बचपन-कागज-कश्ती-पानी!!