दुखी हैं हम सब ,
खुद के कारण ,
खुद के कारण ,
आहत हैं!
करते सत्संग रामायण से ,
आदत से महाभारत हैं !!
पूरी बगिया दी तोर-फोर,
हर कार्य किये सृष्टी -नाशक ,
लकिन फिर भी हम जिन्दा हैं ,
प्यारे एश्वेर की चाहत हैं!!
हमने माना भोजन देता ,
ईश्वर ही सांझ -सवेरे हैं !
फिर भी सुबहो से रात तलक ,
तेरे- मेरे के फेरे हैं!!
सारे के सारे संसाधन ,
पूरी ही तरह निचोर चुके,
हर इक रिश्तो से दुःख रिसते,
हम भावनाये तक छोड़ चुके!!
हम भूले हे ईश्वर तुमको,
तुम ना भूले ये राहत हैं!!
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