हे ईश्वर
तुम क्यूँ न रोते ?
हमने तेरा खेल बिगाड़ा ,
जीवन बहता एक समुन्दर ,
लहर सा मन पर तन है खारा !!
सपनो वाली सभी मछलिया ,
तट पे आ कर तड़प रहीं है !
कौन सी दहशत सागर मे है ,
लहर , लहर से झड़प रही है !!
इच्छा की छाया में देखो ,
एक केकड़ा उलझ- उलझ कर ,
लड़ के खारे पानी से जो ,
बाहर आ कर मरा बेचारा !!
हे ईश्वर
हम क्यूँ है खोते ?
कहाँ से आ के फंसे जाल में ?
रिश्ते- नाते ओढ़ लोमड़ी ,
मिल जाती गायों की खाल में !
तुमको खोजा मिले नहीं तुम ,
ढूध सा पूरा जीवन फाड़ा !!
हे ईश्वर
तुम हमे क्यूँ बोते ??
इतनी फसलें काट चुके हो ,
धर्मो के कीड़ों से लथपथ ,
कितनी फसलें छांट चुके हो ??
बैल हुम ही है ,
हम ही हल भी,
हम ही जमीं ,
हम खुद को जोतें !!
हे ईश्वर
हम क्यूँ यूँ होते ?
नीचे हम रंगीन खिलौने ,
उपर जा बन जाते तारा !! ........................
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