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शुक्रवार, 23 दिसंबर 2011

tanu thadani तनु थदानी हे ईश्वर तुम क्यूँ न रोते


हे ईश्वर
तुम  क्यूँ  न रोते ?

हमने   तेरा   खेल   बिगाड़ा ,
जीवन   बहता   एक  समुन्दर  ,
लहर  सा  मन   पर  तन   है   खारा  !!


सपनो   वाली   सभी  मछलिया ,
तट  पे  आ  कर  तड़प   रहीं  है !
कौन  सी   दहशत   सागर   मे  है ,
लहर , लहर  से  झड़प  रही  है !!


इच्छा  की  छाया  में  देखो  ,
एक  केकड़ा  उलझ- उलझ  कर ,
लड़  के  खारे   पानी  से  जो ,
बाहर   आ  कर  मरा  बेचारा  !!


हे  ईश्वर
हम  क्यूँ  है  खोते  ?


कहाँ   से  आ  के  फंसे   जाल  में ?
रिश्ते- नाते  ओढ़   लोमड़ी  ,
मिल  जाती  गायों   की  खाल  में !
तुमको   खोजा     मिले   नहीं    तुम  ,
ढूध  सा  पूरा  जीवन   फाड़ा  !!


हे   ईश्वर
तुम  हमे   क्यूँ   बोते ??


इतनी   फसलें   काट  चुके   हो ,
धर्मो   के  कीड़ों   से  लथपथ ,
कितनी   फसलें  छांट  चुके  हो ??
बैल   हुम  ही  है , 
हम  ही  हल   भी,
हम  ही  जमीं  ,
हम  खुद  को  जोतें  !!

हे  ईश्वर
हम  क्यूँ  यूँ   होते  ?

नीचे   हम  रंगी   खिलौने ,
उपर  जा  बन  जाते   तारा !!  ........................


    

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