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मंगलवार, 19 जुलाई 2011

hey eshwar (tanu thadani)


hey eshwar

घर की लक्ष्मी -जीवन संगी ,
ये सब उपमाएँ कथा हुई !
दिल दिल से मिलते ही नहीं ,
बस देह मिलन की प्रथा हुई !


नारी को साफ़ नदी माना ,
नारी को था देवी माना ,
नारी अब लांघ दीवारों को ,
बाज़ार में आ कर खड़ी  हुई !


आजादी की ये हवा चली ,
हम शर्मो से आजाद हुए!
बीबी शौहर से दगा करे ,
चुनरी -आँचल बर्बाद हुए !


अब जीवन शैली बदल गई ,
हम देह-सुखो से नपते  हैं !
किस- किस के आंसू पोछेगे,
घर- घर में ही ये व्यथा हुई !


जो छनिक सुखो के खातिर नारी ,
हया बेचती फिरती है !
वो रोज सुबह जब उठती है ,
अपनी नजरो में गिरती है !


हे ईश्वर घर की लक्ष्मी में ,
संतोष भरो -सम्मान भरो !
भौतिकता को जीवन माना ,
बस यही हमारी खता हुई !

हे ईश्वर {तनु थदानी }


tanuthadani@ymail.com
हर ओर द्वार है मृत्यु का ,
तुम भीतर डर के दुबके क्यों ?

इस  पार द्वार के अपने हैं,
उस पार भी तो कुछ अपने हैं !
ये बदन नहीं ये कपडे  हैं ,
हम बदल-बदल कर आते हैं !
जीवन के हर एक नाटक में,
अपना किरदार निभाते हैं !!

 इस पार अगर है साथ कोई ,
उस पार भी तेरे पूर्वज  हैं !
वो तेरे इन्तजार में हैं ,
चलो वापस ले कर आते हैं !!

जीवन जीने की युक्ति ये -
मत मानो कही भी मुक्ति है !
मृत्यु के पहले ,बाद में भी ,
हम अपनों के ही संग रहे !
जिसे  बाबा-चाचा आज कहे ,
कल बेटा बन कर संग रहे !

हमे हर किरदार निभाना हैं ,
बस रूप बदल कर आना हैं !
हम  आज सुरों के साथ हैं तो ,
कल तुमको गाना गाना हैं !! 
  

hey eshwar (tanu thadani)


सारा जीवन इक कागज है,
हम दुःख-सुख लिखते जाते हैं !
हम हैं  बच्चो के जैसे  जो,
कागज की नाव बनाते हैं !!

कुछ छूट गया ,कुछ पकड़ लिया,
सारा जीवन यूँ व्यर्थ गया !
जब शाम हुई ,तम देख-देख .
हम रोने क्यूँ लग जाते हैं!!

हर शाम का स्वागत किया करो,
ये शाम सुबह को लाती है!
इक-इक छण-छण में जीवन है ,
जो बच्चो में मुस्काती है !!

जब दुःख आये ,सुख बाँट दो सब ,
तुमको भी सुख मिल जायेगा !
तेरे जैसा ही इक कोई ,
तुमको भी खुश कर जायेगा !!

जीवन को मानो मस्त हवा ,
मत बांधो रिश्ते -नातों में !
हर इक से रिश्ता रखो मगर ,
मत उलझो शह औं मातों में !!

हमने तुमने क्यूँ सुना नहीं ,
जो कान में ईश्वर ने कहा ,
अपने अंदर में ख़ुशी रखो ,
और मुख से निकले हा!हा!!हा !!! 

tanu thadani: hey eshwar (tanu thadani)

tanu thadani: hey eshwar (tanu thadani): "हे ईश्वर तेरी दुनिया मैं , हर रिश्ते -नाते बिकते हैं ! हर घर पे है छत नफरत की , हर घर में दरवाजे छल के , घर के बाहर क्या अंदर भी..."

hey eshwar (tanu thadani)


हे ईश्वर तेरी दुनिया मैं ,
हर रिश्ते -नाते बिकते हैं !

हर घर पे है छत नफरत की ,
हर घर में दरवाजे छल के ,
घर के बाहर क्या अंदर भी ,
षडयंत्रो की हाला छलके !

हे ईश्वर सच तो यही ही की ,
जो बिकते हैं वो टिकते हैं !!

जो बिका नहीं वो व्यर्थ गया ,
हम सब दुःख-सुख में हैं नपते !
हम सब सदियो से छुरे लिये,
बस नाम ही तेरा हैं  जपते !!

सब शक के पेड पे बैठ-बैठ ,
रिश्तो के फल को खाते हैं !
अपनी-अपनी ढपली ले कर ,
अपना ही राग सुनाते हैं!!


सूरज से ताप का रिश्ता हैं,
चंदा से ठंडक  का रिश्ता !
सदियो से अटूट इन रिश्तो सा ,
हम में भी भर दो इक रिश्ता !!

हे ईश्वर धैर्य भरो हममें ,
हर पोर-पोर से दुख रिसता!
हर ओर ही घोर अँधेरा हैं ,
खुद के ही हाथ न दिखते हैं!!








hey eshwar (tanu thadani)


hey eshwar

उस सपने को जिन्दा रखना ,
जिसमे हम ख़ुशी से नाच रहें !
उस सपनो  में जिन्दा रहना,
आपस में दुख -सुख बांच रहें !

कुछ मिल जाये मत खुश होना ,
कुछ छुटे तो भी मत रोना  !
जितना जागो खुशियाँ बांटो ,
जब सोओं खुश हो कर सोना !

हम कार्य करें अपने-अपनें ,
ना जाएँ मालाएं जपने !
हर दिशा में है ईश्वर बसता,
मंदिर-मस्जिद को मत ढोना!!

लालच के पर्वत चढ़ बैठे,
फिर खुद को ठंडा कर बैठे ,
हम अकर ना जाए हे ईश्वर ,
रिश्तों में बसती आंच रहे!!

मंगलवार, 12 जुलाई 2011

hey eshwar (tanu thadani)


जब शर्म बेच दी सपनो ने
सच तब से ही शर्मिंदा है !

भाई के गर्दन पे भाई ,
खातिर पैसों के जा चढ़ता ,
कुछ छणिक सुखों के खातिर ही ,
मानव ये क्या-क्या ना करता !

सपने हें ऊँचे बनने के ,
सपने हें तन के चलने के ,
सपने ही सपने जीवन के ,
सोने-चांदी मे पलने के !

सब दो पल की ही खुशियाँ हें ,
सब दो पल के ही  सपने हें,
हम दो पल के इस नाटक में  ,
अभिनेता हें सो ज़िंदा हें !!

दो पल के सपनो के खातिर ,
हम लरें ही क्यूँ ?
हम मरें ही क्यूँ ??
क्यूँ सपनो के ही खातिर हम ,
अपने भाई का क़त्ल करें ,
हम लूट करें -हम पाप करें ,
अछम्य बना दें अपने को ?

हें कौन विवशता की हम सब ,
बे- शर्म सपन के शहर बसें ?
सचमुच ये सच शर्मिन्दा हे ,
कि क्यूँ कर हम भी जिन्दा हें ??