आंखें तो सलामत हैं
मगर चश्मा है ये कैसा ?
कभी नाचे है पैसे को ,
कभी नचाय ये पैसा !!
यही दुनिया का है मेला ;
यहाँ बेटो के संग झूले !
कि भांजा साथ था फिर भी ,
ना जाने कैसे हम भूले ??
हमे तो इस तरह अपनी ही खुदगर्जी ने लूटा!
बीबी आते ही बहनों का हमसे हाथ भी छूटा!!
सभी मिलते है अब हम तो ,
उसी बचपन के फोटो में ,
उसी मे छोटी बहना देख ,
बिटिया याद आती है,
कोई तो दुःख है बहना को ;
ना चित्ठी है ना पाती है !!
सभी हम अपने जिद के कमरों मे ही ,
बंद है रहते !
कि जब भी फोन पे मिलते है
केवल अपने दुःख कहते !!
हमीं ने गलतियो के शहर में ;
घर अपने बनाय!
हमीं ने दिल के खेतों में ;
जहर के पेड़ लगाए!!
हमीं जब अपनी करतूतों से
जब-जब तंग है होते ;
हमीं भगवान् से पूछे -
हमें बनाया क्यों एसा ??
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