जब बाहों में गोरा तन हो ,
उस तन मे इक काला मन हो ,
हे ईश्वर राह दिखाओ कि,
कैसे उससे अपनापन हो ??
है कलयुग तो निर्दोष ,
हमारे कपटों से बदनाम हुआ !
जला दी अस्मत हवस मे अपनी ,
तन कपटों कि खान हुआ !!
बस चार दीवारों को ही जब ,
घर मान के जीना सीख लिया !
विष भरे होंठ अब सजनी के ,
साजन ने पीना सीख लिया !!
घर भी होंगें - बच्चे होंगें ,
पर प्यार को सब ही तरसेगें ,
तन कि अग्नि में जो झुलसे ,
वो नेह को कैसे समझेगें ??
जीवन के घर में प्यार कि छत ,
हे ईश्वर सबके सर देना !
घर छोटा भी हो रह लेंगें ,
पर प्यार का तो इक आँगन हो !!
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