क्या जीवन का था लक्ष्य यही??
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सब हासिल हो सब मिल जाए ;
हर इक जीवन का लक्ष्य यही!
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सब हासिल हो सब मिल जाए ;
हर इक जीवन का लक्ष्य यही!
चुन-चुन कर भरा किये घर को ,
पर्दों, सोफों ,सामानों से,
दिन-दिन भर प्रपंच किये ,
हम सन जाते अपमानो से!
घर भरते-भरते उम्र कटी ,
फिर जायदाद बेटों में बटी,
हमको भी मिला फिर इक कोना,
जहाँ खिड़की थी और थें पर्दे ,
पर्दे के बाहर देखा जब ,
हर ओर ही था सूना-सूना !
अपरिचित थें वो व्यस्त मिले,
जो परिचित थे वो ध्वस्त मिले ,
अब दर्द ही था दूना-दूना,
हर पोर-पोर रिस-रिस पूछे ,
क्या जीवन का था लक्ष्य यही??
अच्छा लिखते हो !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सुशील भइया..........
हटाएंबहुत अच्छा लिख रहे हैं आप .. बधाई..
जवाब देंहटाएंगीता पंडित जी,धन्यवाद !
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