मिटती ही है- मिट जाएगी,
दौलत -शोहरत और जवानी !
सांस-सांस में छम-छम नाचें,
बचपन-कागज-कश्ती-पानी!!
अपनी आदत में बचपन को ,
जिन्दा रखने वाला ही तो,
सही मायनो में पंडित है ,
सही मायनो में वो ज्ञानी!!
बड़े हुए तो देखोगे तुम,
दुनिया गम से भरी पड़ी!
छल छलके हर आँखों से औ ,
वासनाएं हर नजर खड़ी !!
भर सिन्दूर किसी का नारी ,
किसी के साथ भी सोती है !
छोटे हो या बड़े शहर,
बस यही कहानी होती है !!
अपने-अपने धोखों को,
अपने ढंग से जायज कहते!
न होता दुनियां में ये सब,
दिल से जो बच्चे रहते!!
अपने मन को बचपन की ,
मासूम सी दुनियां में लाओ !
भोलेपन की लम्बी पगड़ी,
नफरत के सिर पहनाओ !!
इस जीवन को जी लो यूँ की ,
तुमने कही औ मैंने मानी!
लौट के आएगा फिर हममें,
बचपन-कागज-कश्ती-पानी!!
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